जून तिमाही के दौरान भारतीय वाणिज्यिक बैंकों के डिफॉल्ट में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज हुई है। सालाना आधार पर 26% की छलांग के साथ कुल डिफॉल्ट बढ़कर ₹63,000 करोड़ तक पहुँच गए हैं। इस बढ़ोतरी में मुख्य रूप से माइक्रोफाइनेंस और असुरक्षित रिटेल लोन पोर्टफोलियो की अहम भूमिका रही है। CARE Edge Ratings के आँकड़ों के अनुसार, निजी बैंकों में डिफॉल्ट के मामले ज़्यादा सामने आए हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में यह तुलनात्मक रूप से कम रहे।
एक बड़ी निजी बैंक में तकनीकी कारणों और कृषि क्षेत्र की कमजोर मौसमी लोन परफॉर्मेंस की वजह से डिफॉल्ट बढ़े हैं। मार्च 2024 के अंत में कुल डिफॉल्ट ₹57,000 करोड़ थे, जो अगले तिमाही में बढ़कर ₹63,000 करोड़ तक पहुँच गए। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में निजी बैंकों में डिफॉल्ट सालाना आधार पर 41% बढ़कर ₹36,000 करोड़ हो गए, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में यह 14.4% बढ़कर ₹27,000 करोड़ तक पहुँचे।
CARE Edge के अपग्रेड और रिकवरी डेटा से पता चलता है कि पहली तिमाही में गति धीमी रही। अप्रैल-जून 2025 के दौरान अपग्रेड और रिकवरी ₹29,000 करोड़ रही, जो एक साल पहले की समान अवधि के ₹28,000 करोड़ से केवल थोड़ा अधिक है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में रिकवरी और अपग्रेड 6% घटकर ₹16,000 करोड़ पर आ गई, जबकि निजी बैंकों में सुधार दर्ज किया गया। उनकी रिकवरी एक साल पहले के ₹11,000 करोड़ से बढ़कर ₹13,000 करोड़ हो गई।