सितंबर 2025 की शुरुआत में वैश्विक मार्केट कैप 140.81 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया था, जिसमें भारत का हिस्सा 5.14 ट्रिलियन डॉलर या 3.65% रहा। एक साल पहले, सितंबर 2024 में भारत का हिस्सा 4.52% (5.66 ट्रिलियन डॉलर) था। यानी पिछले एक वर्ष में भारत के हिस्से में गिरावट दर्ज की गई है।
वर्तमान में भारत वैश्विक मार्केट कैप में हांगकांग के बाद पाँचवें स्थान पर है। अमेरिका ने 48.10% हिस्से के साथ पहला स्थान बनाए रखा है, जबकि चीन दूसरे, जापान तीसरे और जर्मनी चौथे स्थान पर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2025 में भारत का हिस्सा घटकर 3.60% रह गया था, जो पिछले 16 महीनों का सबसे निचला स्तर था। जून से अगस्त 2025 के दौरान वैश्विक मार्केट कैप में 6.72 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जबकि भारत का मार्केट कैप 5.38 ट्रिलियन डॉलर से घटकर 5.03 ट्रिलियन डॉलर रह गया।
अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी में रिकवरी की वजह से पिछले एक साल में वैश्विक मार्केट कैप में 15.82 ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन भारत का मार्केट कैप इस अवधि में 5.66 ट्रिलियन डॉलर से घटकर 5.03 ट्रिलियन डॉलर पर आ गया।
इसके बावजूद, मार्केट कैप की दृष्टि से भारत की स्थिति वैश्विक टॉप 10 देशों में बनी हुई है। कंपनियों की आय में कमजोरी, विदेशी संस्थागत निवेशकों की बिकवाली और ऊँचे वैल्यूएशन की वजह से भारत के मार्केट कैप पर दबाव देखा गया है।
पिछले साल अगस्त में भारत की इक्विटी मार्केट का वैल्यूएशन वैश्विक स्तर पर ऊँचे स्तर पर था। उस समय मज़बूत विदेशी निवेश प्रवाह और बेहतर कॉर्पोरेट प्रदर्शन की वजह से बाजार मज़बूत रहा। लेकिन अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद पूँजी अमेरिका की ओर मुड़ गई। साथ ही ऊँचे वैल्यूएशन के कारण फंडों ने मुनाफावसूली (प्रॉफिट बुकिंग) भी की। वर्तमान में भारत का मार्केट कैप उसके जीडीपी की तुलना में 178% है, जो लंबे समय की औसत 87% से काफी अधिक है।