ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाल ही में भारत, रूस और अमेरिका को लेकर काफी विवादित बयान दिए हैं। उन्होंने भारत पर आरोप लगाया कि वह रूस से बड़ा तेल आयात कर “पुतिन की क्रूर युद्ध मशीन” को फंड कर रहा है, जिससे यूक्रेन में जारी युद्ध को मदद मिल रही है। जॉनसन ने यह भी समर्थन किया कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आयातित उत्पादों पर 25% अतिरिक्त टैरिफ (अब कुल 50%) लगाना एक सही कदम है। उन्होंने लिखा कि ट्रंप ने “साहसिक, सैद्धांतिक और तार्किक कदम” उठाया है और उन देशों को सजा दी है जो रूसी तेल खरीदकर युद्ध को फंड कर रहे थे। साथ ही, उन्होंने यूरोपीय देशों की बहस पर तंज कसा कि आखिर यूरोप कब ऐसा कदम उठाने की हिम्मत दिखाएगा।
जॉनसन की ये टिप्पणी ऐसे समय पर आई है जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लंदन यात्रा के दौरान भारत और ब्रिटेन के बीच ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते पर भी हस्ताक्षर हुए थे। जॉनसन का कहना था कि यूरोपीय देश केवल ट्रंप की आलोचना करने में लगे रहते हैं, लेकिन कदम उन्हें नहीं उठाते। उनकी कड़ी बातों में यह भी कहा गया कि, “अंततः डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को पुतिन के नरसंहार की कीमत चुकाने पर मजबूर किया है।” अमेरिका द्वारा लगाए गए इस टैरिफ की पहली किस्त 7 अगस्त 2025 से लागू हो गई है और 21 दिन बाद अतिरिक्त शुल्क भी लागू हो जाएगा। इससे भारत अब ब्राजील के साथ अमेरिकी बाज़ार में सबसे अधिक शुल्क देने वाला देश बन गया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पश्चिमी देशों पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाते हुए कहा कि यूरोप भी अलग-अलग रूपों में रूस से ऊर्जा का आयात कर रहा है, लेकिन निशाना केवल भारत को बनाया जा रहा है। भारतीय सरकार ने इस पूरे मसले पर दृढ़ता दिखाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य भारतीय नेताओं ने साफ कहा है कि भारत किसी दबाव में अपने रणनीतिक हितों और किसानों की भलाई से समझौता नहीं करेगा। भारतीय मंत्री और विपक्ष ने इसे “आर्थिक ब्लैकमेल” कहा है और अमेरिका की नीति में भेदभाव बताया है। कुल मिलाकर, ब्रिटेन के पूर्व पीएम के बयान और अमेरिका के कड़े कदम ने भारत, रूस और पश्चिमी देशों के बीच चले आ रहे भू-राजनीतिक और आर्थिक तनावों को नया रंग दिया है। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों पर कोई समझौता नहीं करेगा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना पक्ष दृढ़ता से रखेगा।