चीन पर अमेरिकी टैरिफ: अमेरिका और चीन के बीच 2018 से व्यापारिक तनाव जारी है। इस विवाद की जड़ें दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और औद्योगिक नीतियों में हैं। अप्रैल में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने चीनी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर 145 प्रतिशत कर दिया, जिसके जवाब में चीन ने अमेरिकी आयात पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ दबाव में आ गईं। जून में जिनेवा में हुई वार्ता और लंदन में हुई बैठकों के बाद, दोनों पक्ष अस्थायी रूप से टैरिफ कम करने पर सहमत हुए। हालाँकि, यह राहत ज़्यादा देर तक नहीं टिक पाई, क्योंकि अगस्त में फिर से उच्च टैरिफ लगाने की समय सीमा नज़दीक आ रही थी।
रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर टैरिफ लगाने की समयसीमा 90 दिन बढ़ाने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं। यह फैसला ट्रंप द्वारा पत्रकारों के सवालों को टालने के कुछ ही घंटों बाद लिया गया। ट्रंप से पूछा गया था, ‘क्या वह 12 अगस्त की समयसीमा बढ़ाएंगे?’ जवाब में ट्रंप ने कहा, ‘देखते हैं क्या होता है।’ इससे पता चलता है कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच बातचीत अभी भी जारी है और दोनों पक्ष एक स्थायी समाधान की तलाश में हैं।
वर्तमान में, चीन से आयातित वस्तुओं पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाता है, जिसमें 10 प्रतिशत आधार दर और अतिरिक्त 20 प्रतिशत फेंटेनाइल-संबंधी टैरिफ शामिल हैं। ये टैरिफ अमेरिका ने फरवरी और मार्च में लगाए थे। दूसरी ओर, चीन ने अमेरिकी आयात पर दर घटाकर 10 प्रतिशत कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि टैरिफ विस्तार का असर न केवल दोनों देशों की जीडीपी पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता भी बढ़ेगी। निवेशक सतर्क रुख अपनाएंगे, जबकि आयात-निर्यात पर निर्भर कंपनियों की लागत बढ़ सकती है।
अगर अगले 90 दिनों में कोई ठोस समझौता नहीं हुआ, तो टैरिफ दरें फिर से बढ़ सकती हैं, जिससे वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आ सकती है। अमेरिका के प्रमुख व्यापारिक साझेदार और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ इस विवाद को खत्म करने के लिए मध्यस्थता का प्रयास कर सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय सीमा को बढ़ाने का फैसला एक रणनीतिक विराम है, जिससे दोनों देशों को बातचीत के ज़रिए मुद्दों को सुलझाने का मौका मिलेगा, लेकिन अगर कोई समझौता नहीं हुआ, तो यह “व्यापार युद्ध 2.0” की शुरुआत हो सकती है।
भारत को धमकाने वाला अमेरिका, चीन से डर गया? टैरिफ की समयसीमा 90 दिन बढ़ी

