गुजरात उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि वैवाहिक संघर्ष के बीच पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास अत्यंत कठोर स्थिति है और यह भयानक मानसिक क्रूरता के समान है। जो स्वाभाविक रूप से पति के लिए अपनी पत्नी की संगति से दूर रहने का एक उचित बहाना बन जाता है। पत्नी के ऐसे प्रयास पति को लगातार चिंता और भावनात्मक उथल-पुथल की स्थिति में फंसा रहने के लिए मजबूर कर देते हैं। न्यायमूर्ति संजीव ठाकरे ने यह टिप्पणी पत्नी से वैवाहिक जीवन के अधिकार की वसूली के लिए रिट जारी करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए की।
उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
पत्नी के वैवाहिक अधिकार बहाल करने से इंकार करने वाले ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत के आदेशों को भी बरकरार रखा गया। उच्च न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या के प्रयास से उत्पन्न मानसिक क्रूरता की तुलना किसी अन्य कथित मानसिक क्रूरता से नहीं की जा सकती। विवाह में दोनों व्यक्तियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने रिश्ते को करुणा और धैर्य के साथ बनाए रखें। चाहे कितनी भी असहमतियां हों, जैसा कि वर्तमान मामले में है। वर्तमान मामले में पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास करने की बात स्वीकार की है। इतना ही नहीं, पत्नी ने अपने पति के खिलाफ अपमानजनक पोस्टर भी छपवाए। यह सार्वजनिक अपमान है। ऐसी परिस्थितियों में, अदालतों को वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन पर निर्णय लेते समय प्रत्येक मामले की परिस्थितियों और तथ्यों की जांच करनी होगी। इसके अतिरिक्त, वैवाहिक अधिकारों की बहाली प्रदान करते समय, न्यायालय को पति या पत्नी के आचरण तथा वैवाहिक अधिकारों की बहाली से इनकार करने के कारणों पर भी विचार करना चाहिए।
पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास पति के लिए मानसिक क्रूरता है
उच्च न्यायालय ने कहा कि पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास अवसाद का परिणाम है, जिसके कारण अक्सर पति पर शारीरिक प्रतिबंध लग जाते हैं। पत्नी द्वारा आत्महत्या का प्रयास करने तथा सार्वजनिक रूप से पति का अपमान करने वाले पोस्टर छपवाने जैसे कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि, ऐसी धमकियां दबाव का एक साधन बन जाती हैं और पति को लगातार चिंता और भावनात्मक उथल-पुथल की स्थिति में फंसे रहने के लिए मजबूर कर देती हैं। इससे पति के लिए शांतिपूर्ण और सम्मानजनक वैवाहिक जीवन जीना असंभव हो जाता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास करने की बात स्पष्ट रूप से स्वीकार की है, जिसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। पत्नी द्वारा किया गया ऐसा कृत्य पति पर मानसिक क्रूरता माना जाएगा और इसलिए पति ऐसी पीड़ा बर्दाश्त नहीं करेगा।
उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला
पत्नी द्वारा दायर अपील में, वैवाहिक अधिकारों के उपभोग से राहत न देने के ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत के आदेशों को चुनौती देते हुए, पति ने अदालत का ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया कि उसकी पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया था और पोस्टर छपवाकर उसे बदनाम करने की भी कोशिश की थी। वह बहुत डरा हुआ था और भविष्य में ऐसा दोबारा होने की कल्पना मात्र से ही उसे मानसिक तनाव और पीड़ा होने लगी। ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत ने सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद उचित आदेश दिए हैं। उच्च न्यायालय ने पत्नी की अपील को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।
पत्नी का आत्महत्या का प्रयास पति पर भयंकर मानसिक अत्याचार व क्रूरता है: गुजरात हाईकोर्ट

