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ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी एक गंभीर मुद्दा है -सुप्रिम कोर्ट

IPL में ऐप के जरिए सट्टेबाजी के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
“आईपीएल के नाम पर लोग सट्टेबाजी और जुए में लिप्त हो रहे हैं,” -सुप्रिम कोर्ट
ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी एक गंभीर मुद्दा है -सुप्रिम कोर्ट
सभी ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी ऐप्स पर प्रतिबंध या कड़े नियम।
सभी ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी ऐप्स में सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट पर रोक।
सट्टेबाजी को जुए की श्रेणी में शामिल कर सख्त कानून बनाना जरूरी।

online-and-offline-bookmakers-are-a-serious-help-in-sperm-cureसुप्रीम कोर्ट में डॉ. के.ए. पॉल द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी ऐप्स (खासकर IPL के दौरान) को प्रतिबंधित या कड़ा विनियमन लागू करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ये ऐप्स जुए के समान हैं और इनका बच्चों, युवाओं और समाज पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ऑनलाइन सट्टेबाजी के कारण कई लोगों, विशेषकर युवाओं ने आत्महत्या की है। अकेले तेलंगाना में 1,023 से अधिक आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। याचिका में आरोप है कि 25 से अधिक बॉलीवुड, टॉलीवुड के अभिनेता, प्रभावशाली लोग और क्रिकेटर इन ऐप्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे मासूम और युवा इनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। डॉ. पॉल ने कहा कि जैसे सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी दी जाती है, वैसे ही सट्टेबाजी ऐप्स पर कोई सार्वजनिक चेतावनी नहीं दी जाती, जबकि इनके दुष्प्रभाव गंभीर हैं। याचिका में यह भी कहा गया कि लगभग 30 करोड़ भारतीय इन प्लेटफॉर्म्स के जरिए “अवैध रूप से फंस रहे हैं”, जो उनके अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। याचिका में सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट (जैसे “क्रिकेट के भगवान” का संदर्भ) का मुद्दा भी उठाया गया, जिससे आम लोग इन ऐप्स को सही मान लेते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ (जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह) ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि वह इस मुद्दे पर क्या कदम उठा रही है। कोर्ट ने माना कि यह गंभीर सामाजिक समस्या है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि केवल कानून से इसे पूरी तरह रोकना मुश्किल है; परिवार और समाज की भूमिका भी अहम है। कोर्ट ने फिलहाल राज्यों को नोटिस जारी नहीं किया, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर आगे नोटिस जारी करने की बात कही। याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत (फौरन रोक) को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।
यह मामला IPL के दौरान ऐप्स के जरिए बढ़ती सट्टेबाजी, उससे जुड़ी आत्महत्याओं, युवाओं पर पड़ रहे बुरे असर और सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गंभीरता से उठाया गया है। कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है और यदि जरूरत पड़ी तो आगे राज्यों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। फिलहाल, कोर्ट ने तात्कालिक रोक लगाने से इनकार किया है, लेकिन उसने माना है कि यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिस पर ठोस नीति और जनजागरूकता की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने IPL और अन्य खेलों में ऑनलाइन-ऑफलाइन सट्टेबाजी ऐप्स पर प्रतिबंध की मांग वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और उससे जवाब मांगा है। कोर्ट ने इस विषय को गंभीर सामाजिक समस्या माना है, लेकिन अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है।
नीतिगत बदलाव की संभावना: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश या फैसले के बाद केंद्र सरकार सट्टेबाजी ऐप्स पर रोक, कड़ा नियमन, या नए कानून ला सकती है। यदि कोर्ट सरकार को सख्त कदम उठाने को कहता है, तो ऐप्स को बैन या सीमित किया जा सकता है, सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट पर भी रोक लग सकती है।
कोर्ट के आदेश के बाद गूगल, एप्पल जैसे डिजिटल स्टोर्स से गैर-अनुपालक ऐप्स हटाए जा सकते हैं। कोर्ट के निर्देशानुसार, सट्टेबाजी ऐप्स के प्रमोटरों, मालिकों और सेलिब्रिटीज़ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई संभव है। कोर्ट की टिप्पणियों और मीडिया कवरेज से समाज में ऑनलाइन सट्टेबाजी के खतरों को लेकर जागरूकता बढ़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि केवल कानून के जरिए लोगों को सट्टेबाजी से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता, क्योंकि यह एक सामाजिक समस्या है और लोग स्वेच्छा से इसमें शामिल होते हैं।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने कोई अंतिम आदेश नहीं दिया है, लेकिन उसका फैसला या निर्देश सट्टेबाजी ऐप्स के भविष्य, उनके नियमन, और समाज पर उनके प्रभाव को लेकर निर्णायक भूमिका निभा सकता है। यदि कोर्ट सरकार को सख्त कार्रवाई के लिए बाध्य करता है, तो सट्टेबाजी ऐप्स पर बड़ा असर पड़ेगा—उनकी उपलब्धता, प्रमोशन और संचालन पर कड़े नियम लागू हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्ट रूप से पूछा है कि वह ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टेबाजी ऐप्स को लेकर क्या कदम उठा रही है. इससे सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि वह मौजूदा कानूनों की समीक्षा करे और अगर वे अपर्याप्त हैं तो नए, अधिक प्रभावी और समकालीन कानून या नियम बनाए। कोर्ट की टिप्पणी और नोटिस से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार को अब इस विषय पर गंभीरता से विचार करना होगा और ठोस नीति बनानी होगी।
कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ कानून बनाने से समस्या पूरी तरह हल नहीं होगी, लेकिन सैद्धांतिक रूप से इसे रोकना जरूरी है. इससे सरकार को मौजूदा सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 जैसे पुराने कानूनों की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है, और डिजिटल युग के लिए नए नियमों और तकनीकी उपायों पर काम करना पड़ सकता है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट, ऐप्स की उपलब्धता (जैसे Google Play Store/Apple App Store से हटाने की मांग), और बच्चों-युवाओं पर प्रभाव जैसे पहलुओं को भी उठाया. इससे सरकार को बहु-आयामी नियमन—जैसे प्रमोशन, विज्ञापन, तकनीकी एक्सेस और सामाजिक जागरूकता—पर भी नीति बनानी पड़ सकती है।
कोर्ट ने कहा है कि जरूरत पड़ी तो राज्यों को भी पक्षकार बनाया जाएगा और अटॉर्नी जनरल व सॉलिसिटर जनरल से भी राय ली जाएगी. इससे नीति निर्माण में राज्यों और कानूनी विशेषज्ञों की भूमिका बढ़ सकती है, जिससे नीति अधिक समावेशी और व्यावहारिक बन सकती है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और परिवार की भूमिका से भी इस समस्या का समाधान संभव है. इससे सरकार को नीति में शिक्षा, जागरूकता और काउंसलिंग जैसे उपाय भी शामिल करने पड़ सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से केंद्र सरकार की नियामक नीतियों पर सीधा और गहरा असर पड़ेगा। सरकार को अब डिजिटल सट्टेबाजी के खिलाफ अधिक सख्त, समकालीन और व्यापक नीति बनानी पड़ सकती है, जिसमें कानूनी, तकनीकी, सामाजिक और प्रचार संबंधी सभी पहलुओं को शामिल करना होगा। कोर्ट की सक्रियता से नीति निर्माण की प्रक्रिया तेज होगी और समाज में भी इस विषय पर गंभीरता बढ़ेगी.
भारत में फैंटेसी गेमिंग जैसे Dream11, MPL, My11Circle आदि को “गेम ऑफ स्किल” माना गया है, यानी इनमें जीतने के लिए आपके ज्ञान, रणनीति और विश्लेषण की जरूरत होती है, न कि केवल किस्मत की। सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट ने फैंटेसी गेमिंग को कानूनी (Legal) माना है, क्योंकि इनमें स्किल का योगदान मुख्य होता है। MPL पर फैंटेसी स्पोर्ट्स के अलावा कैजुअल और कार्ड गेम्स भी हैं। इनमें से कुछ गेम्स (जैसे रम्मी) भी स्किल-आधारित माने जाते हैं और कानूनी हैं, लेकिन यह राज्य-वार कानूनों पर निर्भर करता है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट्स ने फैंटेसी स्पोर्ट्स को “गेम ऑफ स्किल” माना है, न कि जुआ या सट्टेबाजी। सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि फैंटेसी स्पोर्ट्स में जीत या हार मुख्य रूप से यूजर की स्किल, रणनीति और ज्ञान पर निर्भर करती है, इसलिए इसे जुए की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने Dream11 जैसे फैंटेसी गेम्स के खिलाफ प्रतिबंध की मांग वाली याचिकाएं खारिज करते हुए राजस्थान, पंजाब-हरियाणा और बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसलों को बरकरार रखा, जिनमें इन्हें कानूनी और स्किल-आधारित माना गया था।
IPL और BCCI जैसे संगठनों का पार्टनर ड्रीम11 को भारत के अधिकांश राज्यों में कानूनी माना गया है, क्योंकि इसे “कौशल का खेल” की श्रेणी में रखा गया है, न कि “जुए” में। सुप्रीम कोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ड्रीम11 जैसे फैंटेसी गेम्स में सफलता मुख्य रूप से यूजर के खेल ज्ञान, रणनीति और निर्णय पर निर्भर करती है, इसलिए ये जुआ नहीं माने जाते। हालांकि, भारत के कुछ राज्यों (जैसे असम, ओडिशा, तेलंगाना, नागालैंड और सिक्किम) में ड्रीम11 और इसी तरह के फैंटेसी गेम्स पर रोक है। कुछ हालिया कानूनी याचिकाएं और विवाद भी चल रहे हैं, जिससे भविष्य में कानूनी स्थिति बदल सकती है, लेकिन फिलहाल ड्रीम11 भारत के अधिकांश हिस्सों में वैध है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि वह ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स के लिए सख्त नियम बनाए, जिससे इन ऐप्स की बच्चों और युवाओं तक पहुंच सीमित हो सके। इससे अवांछित और हानिकारक डिजिटल सामग्री से बच्चों की रक्षा संभव होगी।
अगर कोर्ट सरकार को सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट पर रोक लगाने का निर्देश देता है, तो बच्चों और युवाओं पर इन ऐप्स का आकर्षण कम होगा। इससे वे भ्रामक प्रचार से बचेंगे और सट्टेबाजी की ओर आकर्षित नहीं होंगे।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सामाजिक जागरूकता और परिवार की भूमिका पर भी बल दिया है। इससे सरकार और समाज दोनों स्तरों पर बच्चों और युवाओं को ऑनलाइन खतरों, जुए और सट्टेबाजी के दुष्प्रभावों के बारे में शिक्षित किया जा सकता है।
सरकार ऐप स्टोर्स और इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दे सकती है कि वे सट्टेबाजी ऐप्स को बच्चों के लिए उपलब्ध न कराएं, या उन पर आयु-सीमा और अन्य सुरक्षा उपाय लागू करें। इससे बच्चों के लिए डिजिटल दुनिया अधिक सुरक्षित बनेगी।
सुनवाई के बाद नीति में परिवारों और स्कूलों की भूमिका को भी महत्व दिया जा सकता है, ताकि माता-पिता और शिक्षक बच्चों को सही-गलत की पहचान कराने, डिजिटल व्यवहार सिखाने और जोखिम से बचाने में सक्रिय भूमिका निभाएं।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के कारण सरकार द्वारा बनाए गए सख्त नियम, जागरूकता अभियान, डिजिटल सुरक्षा उपाय और सेलिब्रिटी प्रचार पर नियंत्रण—ये सभी मिलकर बच्चों और युवाओं को ऑनलाइन सट्टेबाजी के खतरों से अधिक सुरक्षित बना सकते हैं। इससे उनका मानसिक, सामाजिक और डिजिटल विकास बेहतर तरीके से हो सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और निर्देशों के बाद बाल संरक्षण कानूनों में निम्नलिखित नए कदम उठाए जा सकते हैं जीस में बच्चों और किशोरों को ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स से सुरक्षित रखने के लिए बाल संरक्षण कानूनों में डिजिटल सुरक्षा संबंधी नए प्रावधान जोड़े जा सकते हैं। इसमें ऐप्स की आयु-सीमा, प्रमाणीकरण और बच्चों के लिए एक्सेस रोकने के उपाय शामिल हो सकते हैं। बच्चों को आकर्षित करने वाले सेलिब्रिटी प्रचार पर रोक या कड़ा नियंत्रण लाने के लिए कानूनी संशोधन किए जा सकते हैं, ताकि बच्चों के मन में सट्टेबाजी का आकर्षण कम हो। बाल संरक्षण कानूनों के तहत स्कूलों और समुदायों में जागरूकता अभियान अनिवार्य किए जा सकते हैं, जिससे बच्चों और अभिभावकों को ऑनलाइन जुए और सट्टेबाजी के जोखिमों के बारे में जानकारी दी जा सके।
किशोर न्याय अधिनियम व अन्य बाल संरक्षण कानूनों में ऑनलाइन शोषण, जुआ या सट्टेबाजी से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग, निगरानी और त्वरित कार्रवाई के लिए विशेष तंत्र विकसित किए जा सकते हैं। बाल कल्याण समितियों (CWCs) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को डिजिटल खतरों की निगरानी, शिकायत निवारण और बच्चों के पुनर्वास के लिए अधिक अधिकार और संसाधन दिए जा सकते हैं। बच्चों को सट्टेबाजी के लिए प्रेरित करने वाले व्यक्तियों, प्लेटफॉर्म्स या संस्थाओं के लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान जोड़े जा सकते हैं, जिससे बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोका जा सके। बाल देखभाल गृहों के कर्मचारियों के लिए डिजिटल सुरक्षा और संवेदनशीलता का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जा सकता है, ताकि वे बच्चों की जरूरतों को बेहतर समझ सकें और उन्हें ऑनलाइन खतरों से बचा सकें।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद बाल संरक्षण कानूनों में डिजिटल युग की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए नए प्रावधान, जागरूकता, निगरानी और दंडात्मक उपायों को शामिल किया जा सकता है, जिससे बच्चों को ऑनलाइन सट्टेबाजी जैसे खतरों से अधिक प्रभावी सुरक्षा मिल सकेगी।

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